कि ज़रा मेरी बातों पे भी.. तू गौर अदा फरमा.. कहीं | हिंदी शायरी

"कि ज़रा मेरी बातों पे भी.. तू गौर अदा फरमा.. कहीं ऐसा ना हो कि तुझे.. भरी महफिल में मैं रुसवा करदू.. तू रुखसत ना हो यूं.. बायां कर तो एक बार.. कि बस एक बायां पे फ़ारिग.. तेरा हर शिखवा गिला करदू.. मरीज़ मेरा दिल है तेरे इश्क का.. मर्ज़ है मुझे इश्क का तेरे.. तू मिल जाए तो इलाज दिल का अपने.. तेरे नाम से मैं मुकम्मल करदू.. हर दुआ में मांग बस तेरी होती है.. तेरे खयालों से रौशन सुबह मेरी होती है.. कि नूरानी सूरत को तेरी मैं.. ज़िंदगी में अपनी शामिल करलूं.. ख्वाइश है दिल की तुझे पाने कि.. एक मौका अगर दे ख़ुदा तो.. तुझे इश्क से मैं अपने.. तुझसे ही हासिल करलूं.."

 कि ज़रा मेरी बातों पे भी..
तू गौर अदा फरमा..
कहीं ऐसा ना हो कि तुझे..
भरी महफिल में मैं रुसवा करदू..
तू रुखसत ना हो यूं..
बायां कर तो एक बार..
कि बस एक बायां पे फ़ारिग..
तेरा हर शिखवा गिला करदू..
मरीज़ मेरा दिल है तेरे इश्क का..
मर्ज़ है मुझे इश्क का तेरे..
तू मिल जाए तो इलाज दिल का अपने..
तेरे नाम से मैं मुकम्मल करदू..
हर दुआ में मांग बस तेरी होती है..
तेरे खयालों से रौशन सुबह मेरी होती है..
कि नूरानी सूरत को तेरी मैं..
ज़िंदगी में अपनी शामिल करलूं..
ख्वाइश है दिल की तुझे पाने कि..
एक मौका अगर दे ख़ुदा तो..
तुझे इश्क से मैं अपने..
तुझसे ही हासिल करलूं..

कि ज़रा मेरी बातों पे भी.. तू गौर अदा फरमा.. कहीं ऐसा ना हो कि तुझे.. भरी महफिल में मैं रुसवा करदू.. तू रुखसत ना हो यूं.. बायां कर तो एक बार.. कि बस एक बायां पे फ़ारिग.. तेरा हर शिखवा गिला करदू.. मरीज़ मेरा दिल है तेरे इश्क का.. मर्ज़ है मुझे इश्क का तेरे.. तू मिल जाए तो इलाज दिल का अपने.. तेरे नाम से मैं मुकम्मल करदू.. हर दुआ में मांग बस तेरी होती है.. तेरे खयालों से रौशन सुबह मेरी होती है.. कि नूरानी सूरत को तेरी मैं.. ज़िंदगी में अपनी शामिल करलूं.. ख्वाइश है दिल की तुझे पाने कि.. एक मौका अगर दे ख़ुदा तो.. तुझे इश्क से मैं अपने.. तुझसे ही हासिल करलूं..

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