मैने पूछा तुम क्या करती हो
डरती हो या नए से रंग भरती हो।।
जा चुका यह वक्त का खयाल है तुम्हे
या सिर्फ नाम जुड़ने के सवाल से मरती हो।
क्या खोया तुमने क्या ही पाया है
दूर जो जाके बैठा था कहीं
क्या उससे भी अपना बनाया है
अरे एक ही तो दिल है जनाब
क्या वो भी जुड़ पाया है।।
वक्त के पहिए में गुज़र रहा था मैं
एक दौर और आना बाकी था
पोहोच ही गया था एक छोर तक मैं
एक और जिम्मेदारी का वक्त साथी था।
मेरे ख्याल से।
©Kalamzaar
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