White आजकल न बहुत ज्यादा उलझन रहती है। कारण क्या ह | हिंदी मोटिवेशनल

"White आजकल न बहुत ज्यादा उलझन रहती है। कारण क्या है इसका कुछ पता नहीं। क्या हुआ है ये भी नहीं कहा जा सकता है। क्या होगा ये कह पाना तो मुश्किल है ही। बस खुद में खोए रहना हकीकत सी बन गई है। बात बात पर गुस्सा चिड़चिड़ापन रवैया बन गया है। इस रवैए को बदलना मेरी जरुरत है शायद पर मैं नहीं बदल पा रहा हूं। रोना चाहता हूं पर नहीं रो पाता हूं। एक और अजीब सी चाहत पनप रही है कि कोई हो जो हमें समझ सकें।मेरी हर हार में साथ हो हर जीत को सेलिब्रेट कर सकें। जब घुटन महसूस हो तो उससे कहा जा सकें और उसे सुना जा सकें। मैं ही नहीं एक ऐसा शख्स यहां हर कोई मांग रहा है। कुछ को मिल भी जाता है वो अलग बात है। फिलहाल मुझे चाहिए इसी कशमकश में सवाल उठता है मुझे ऐसा शख्स क्यों मिलेगा। मैंने कौन से झंड़े गाड़ लिए है। है ही क्या जिसे देखकर कोई पास आकर रूकेगा। खैर जो है सो है फिलहाल ज्यादा उलझन है लिखकर मन हल्का हो जाता है। इसलिए लिख रहा हूं मैं ख्वाबों को बुन रहा हूं। ©Harsh Sharma"

 White आजकल न बहुत ज्यादा उलझन रहती है। कारण क्या है इसका कुछ पता नहीं। क्या हुआ है ये भी नहीं कहा जा सकता है। क्या होगा ये कह पाना तो मुश्किल है ही। बस खुद में खोए रहना हकीकत सी बन गई है। बात बात पर गुस्सा चिड़चिड़ापन रवैया बन गया है।
इस रवैए को बदलना मेरी जरुरत है शायद पर मैं नहीं बदल पा रहा हूं। रोना चाहता हूं पर नहीं रो पाता हूं। एक और अजीब सी चाहत पनप रही है कि कोई हो जो हमें समझ सकें।मेरी हर हार में साथ हो हर जीत को सेलिब्रेट कर सकें। जब घुटन महसूस हो तो उससे कहा जा सकें और उसे सुना जा सकें। मैं ही नहीं एक ऐसा शख्स यहां हर कोई मांग रहा है। कुछ को मिल भी जाता है वो अलग बात है। फिलहाल मुझे चाहिए इसी कशमकश में सवाल उठता है मुझे ऐसा शख्स क्यों मिलेगा। मैंने कौन से झंड़े गाड़ लिए है। है ही क्या जिसे देखकर कोई पास आकर रूकेगा। खैर जो है सो है फिलहाल ज्यादा उलझन है लिखकर मन हल्का हो जाता है। इसलिए लिख रहा हूं मैं ख्वाबों को बुन रहा हूं।

©Harsh Sharma

White आजकल न बहुत ज्यादा उलझन रहती है। कारण क्या है इसका कुछ पता नहीं। क्या हुआ है ये भी नहीं कहा जा सकता है। क्या होगा ये कह पाना तो मुश्किल है ही। बस खुद में खोए रहना हकीकत सी बन गई है। बात बात पर गुस्सा चिड़चिड़ापन रवैया बन गया है। इस रवैए को बदलना मेरी जरुरत है शायद पर मैं नहीं बदल पा रहा हूं। रोना चाहता हूं पर नहीं रो पाता हूं। एक और अजीब सी चाहत पनप रही है कि कोई हो जो हमें समझ सकें।मेरी हर हार में साथ हो हर जीत को सेलिब्रेट कर सकें। जब घुटन महसूस हो तो उससे कहा जा सकें और उसे सुना जा सकें। मैं ही नहीं एक ऐसा शख्स यहां हर कोई मांग रहा है। कुछ को मिल भी जाता है वो अलग बात है। फिलहाल मुझे चाहिए इसी कशमकश में सवाल उठता है मुझे ऐसा शख्स क्यों मिलेगा। मैंने कौन से झंड़े गाड़ लिए है। है ही क्या जिसे देखकर कोई पास आकर रूकेगा। खैर जो है सो है फिलहाल ज्यादा उलझन है लिखकर मन हल्का हो जाता है। इसलिए लिख रहा हूं मैं ख्वाबों को बुन रहा हूं। ©Harsh Sharma

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