पंडितों ने शंख फूँके, मोमिनों ने दी अजानें, भोर न | हिंदी कविता Video

" पंडितों ने शंख फूँके, मोमिनों ने दी अजानें, भोर ने स्वच्छंद होकर, तब तमस पर विजय पाई। राजनैतिक मुट्ठियों में कैद इल्मों के उजाले। व्यर्थ आपस में भिड़े, हैं देश में मस्जिद-शिवाले। कर्धनी में खोंसकर अभिमान के घातक तमंचे, कारतूसें मजहबी ले साधना इतरा रही है। जाति धर्मों में उलझकर हो गयी है चेतना जड़, व्यग्र मन की भ्रांतियों पर दंभता मँड़रा रही है। आस्था से जब नमाजें, आरती का दीप बालें, तब विविधता में दिखाई लौ पड़ेगी एकता की। चख रहे उपवास, रोज़े ही स्वयं छिप कर निवाले, व्यर्थ आपस में भिड़े हैं देश में मस्जिद-शिवाले। द्वंद के उठते भँवर में भावनाएं अग्नि बनकर, जातिवादी आरियों को धार देने में तुली हैं। दुधमुँहे मस्तिष्क में विध्वंसता का बीज बोकर, सांप्रदायिक नीतियाँ अंगार देने में तुली हैं। बेड़ियों ने जब पिघलकर क्रांतियों के पेड़ रोपे, तब कहीं घुटती हवा में श्वास ने उन्माद पाया। किन्तु अब वातावरण में लग चुके हैं मकड़जाले। व्यर्थ आपस में भिड़े हैं देश में मस्जिद शिवाले। ********* ©करन सिंह परिहार "

पंडितों ने शंख फूँके, मोमिनों ने दी अजानें, भोर ने स्वच्छंद होकर, तब तमस पर विजय पाई। राजनैतिक मुट्ठियों में कैद इल्मों के उजाले। व्यर्थ आपस में भिड़े, हैं देश में मस्जिद-शिवाले। कर्धनी में खोंसकर अभिमान के घातक तमंचे, कारतूसें मजहबी ले साधना इतरा रही है। जाति धर्मों में उलझकर हो गयी है चेतना जड़, व्यग्र मन की भ्रांतियों पर दंभता मँड़रा रही है। आस्था से जब नमाजें, आरती का दीप बालें, तब विविधता में दिखाई लौ पड़ेगी एकता की। चख रहे उपवास, रोज़े ही स्वयं छिप कर निवाले, व्यर्थ आपस में भिड़े हैं देश में मस्जिद-शिवाले। द्वंद के उठते भँवर में भावनाएं अग्नि बनकर, जातिवादी आरियों को धार देने में तुली हैं। दुधमुँहे मस्तिष्क में विध्वंसता का बीज बोकर, सांप्रदायिक नीतियाँ अंगार देने में तुली हैं। बेड़ियों ने जब पिघलकर क्रांतियों के पेड़ रोपे, तब कहीं घुटती हवा में श्वास ने उन्माद पाया। किन्तु अब वातावरण में लग चुके हैं मकड़जाले। व्यर्थ आपस में भिड़े हैं देश में मस्जिद शिवाले। ********* ©करन सिंह परिहार

#मतभेद

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