ला - इलाज़ मुहब्बत ये तुम्हारी.. तुम पर ही आकर बिख | हिंदी Shayari

"ला - इलाज़ मुहब्बत ये तुम्हारी.. तुम पर ही आकर बिखरने को.. मजबूर करती है.. तुम्हारे दूर जाने पर इस दिल को.. बेबसी से चूर - चूर करती है.. अंदाज़ - ए - बयान तुम्हरा.. नज़ाकत से तकदील होता है.. इबादत कैसे ना हो तुम्हारी.. मुहब्बत में रहबर.. इश्क़ का ख़ुदा होता है.. दुआ हर रोज़ करते हैं.. उनकी दीद को हर पहर मरते हैं.. इंतज़ार करना फितरत में नहीं.. फिर भी इंतज़ार उनका हर रोज़ करते हैं.. कुछ इस तरह वफा की रस्में अदा करते हैं.. तलब में उनकी मुसलसल.. यूं तन्हा आंहें भरते हैं.. खलवत - ए - इंतज़ार तुम्हरा.. मुख्तसर सी बात है.. माज़रत तुम्हारी.. काविश हमारी है.. लबों पे साज़ हैं.. लफ्ज़ तुम्हारे सुन ने की.. बेकरारी है..।। कुछ इस क़दर आपके इश्क़ का.. खुमार हम पर भरी है.. फानी जिस्म है.. और फनाह तुम पर ये जान हमारी है..।।"

 ला - इलाज़ मुहब्बत ये तुम्हारी..
तुम पर ही आकर बिखरने को..
मजबूर करती है..
तुम्हारे दूर जाने पर इस दिल को..
बेबसी से चूर - चूर करती है..
अंदाज़ - ए - बयान तुम्हरा..
नज़ाकत से तकदील होता है..
इबादत कैसे ना हो तुम्हारी..
मुहब्बत में रहबर..
इश्क़ का ख़ुदा होता है..
दुआ हर रोज़ करते हैं..
उनकी दीद को हर पहर मरते हैं..
इंतज़ार करना फितरत में नहीं..
फिर भी इंतज़ार उनका हर रोज़ करते हैं..
कुछ इस तरह वफा की रस्में अदा करते हैं..
तलब में उनकी मुसलसल..
यूं तन्हा आंहें भरते हैं..
खलवत - ए - इंतज़ार तुम्हरा..
मुख्तसर सी बात है..
माज़रत तुम्हारी..
काविश हमारी है..
लबों पे साज़ हैं..
लफ्ज़ तुम्हारे सुन ने की..
बेकरारी है..।।
कुछ इस क़दर आपके इश्क़ का..
खुमार हम पर भरी है..
फानी जिस्म है..
और फनाह तुम पर ये जान हमारी है..।।

ला - इलाज़ मुहब्बत ये तुम्हारी.. तुम पर ही आकर बिखरने को.. मजबूर करती है.. तुम्हारे दूर जाने पर इस दिल को.. बेबसी से चूर - चूर करती है.. अंदाज़ - ए - बयान तुम्हरा.. नज़ाकत से तकदील होता है.. इबादत कैसे ना हो तुम्हारी.. मुहब्बत में रहबर.. इश्क़ का ख़ुदा होता है.. दुआ हर रोज़ करते हैं.. उनकी दीद को हर पहर मरते हैं.. इंतज़ार करना फितरत में नहीं.. फिर भी इंतज़ार उनका हर रोज़ करते हैं.. कुछ इस तरह वफा की रस्में अदा करते हैं.. तलब में उनकी मुसलसल.. यूं तन्हा आंहें भरते हैं.. खलवत - ए - इंतज़ार तुम्हरा.. मुख्तसर सी बात है.. माज़रत तुम्हारी.. काविश हमारी है.. लबों पे साज़ हैं.. लफ्ज़ तुम्हारे सुन ने की.. बेकरारी है..।। कुछ इस क़दर आपके इश्क़ का.. खुमार हम पर भरी है.. फानी जिस्म है.. और फनाह तुम पर ये जान हमारी है..।।

#pyaar #mohobbat

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