बिकता है गम हुस्न के बाजार में, हजारों दर्द छुपे ह | हिंदी Poetry

"बिकता है गम हुस्न के बाजार में, हजारों दर्द छुपे है इक छोटे से इंकार में, वो क्या समझेंगे प्यार के कशिश को, जिन्होंने फर्क ही नहीं समझा पसंद और प्यार में..v$ ©vibha $ingh"

 बिकता है गम हुस्न के बाजार में, हजारों दर्द छुपे है इक छोटे से इंकार में, वो क्या समझेंगे प्यार के कशिश को, जिन्होंने फर्क ही नहीं समझा पसंद और प्यार में..v$

©vibha $ingh

बिकता है गम हुस्न के बाजार में, हजारों दर्द छुपे है इक छोटे से इंकार में, वो क्या समझेंगे प्यार के कशिश को, जिन्होंने फर्क ही नहीं समझा पसंद और प्यार में..v$ ©vibha $ingh

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