वो नारी है दिल के जज़्बात समझ लेती है मन की हर बात | हिंदी कविता Video

"वो नारी है दिल के जज़्बात समझ लेती है मन की हर बात पढ लेती हैं कहने की जरूरत कहाँ पड़ती उसे वो बिन कहे हर काम कर देती है कभी हँस कर बड़ी से बड़ी बात सह लेती है कभी छोटी-छोटी बातों पर रूठती है घर का रहता सब उसे पता बाहर की भी जिम्मेदारी बखुबी निभाती है आत्मनिर्भर नारी राष्ट्र आगे बढाती है कभी अपनी ख्वाहिशे कुर्बान कर देती है कभी परिवार के मान के लिए सब सहती है तौर-तरिके,तहजीब न जाने कितनी सिखाई जाती हैं जो खुद बहुत हद में पैरों में बेडी उसके बांधी जाती हैं किसी के गलत साबित होने पर बाकी सब भी उसी नजर से देखी जाती है, माँ के पायल की छनछन तो मंदिर की घण्टी सा सूकून महसूस कराती है, उसके हंसने पर टोका जाए भले पर महफिल तो सुन्दर नारी से ही लगती है, जहाँ नारी खिलखिला कर हँसती है बरकत वहीं तो बसती है, प्रेम में कभी राधा सी विशाल हृदय वाली कभी सावित्री बन प्राण पति के बचाती है, नारी करती अपने भीतर नव जीवन को धारण फिर भी नर के बिन अधूरी क्यूँ कही जाती है? वो अपना घर छोड़ आती हैं किसी के लिए पर उम्र भर जिम्मेदारी कितनी निभाती हैं, सबका इतना सोचती खुद को सोचना भूल जाती है बनाके खाना खुद सबसे आखिर में खाती है, हर रोज वही दिनचर्या अवकाश वो कभी ना पाती बदले में बस प्रेम सम्मान और नारी क्या चाहती है? अक्सर लोग कहते उसे कमजोर पर पूछों उससे क्या वो अपने लिए कभी रोती है? फिक्र अपनो की जिक्र अपनों की फिर भी वो कैसे अपनाई नहीं जाती, मुझे ये बात आज तक समझ ना आयी... हर परीक्षा और परिणाम जिंदगी का हर इम्तिहान पास करके भी क्यूँ वो सम्मान नहीं पाती, जिसका वो हकदार होनी थी।। हजारों पाबंदीया उस पर थोपी जाती एक दिन कर देते हम उसके नाम बाकी दिन सीमाओं में नारी फिर क्यों बाँधी जाती हैं ।। ©Priya Gour "

वो नारी है दिल के जज़्बात समझ लेती है मन की हर बात पढ लेती हैं कहने की जरूरत कहाँ पड़ती उसे वो बिन कहे हर काम कर देती है कभी हँस कर बड़ी से बड़ी बात सह लेती है कभी छोटी-छोटी बातों पर रूठती है घर का रहता सब उसे पता बाहर की भी जिम्मेदारी बखुबी निभाती है आत्मनिर्भर नारी राष्ट्र आगे बढाती है कभी अपनी ख्वाहिशे कुर्बान कर देती है कभी परिवार के मान के लिए सब सहती है तौर-तरिके,तहजीब न जाने कितनी सिखाई जाती हैं जो खुद बहुत हद में पैरों में बेडी उसके बांधी जाती हैं किसी के गलत साबित होने पर बाकी सब भी उसी नजर से देखी जाती है, माँ के पायल की छनछन तो मंदिर की घण्टी सा सूकून महसूस कराती है, उसके हंसने पर टोका जाए भले पर महफिल तो सुन्दर नारी से ही लगती है, जहाँ नारी खिलखिला कर हँसती है बरकत वहीं तो बसती है, प्रेम में कभी राधा सी विशाल हृदय वाली कभी सावित्री बन प्राण पति के बचाती है, नारी करती अपने भीतर नव जीवन को धारण फिर भी नर के बिन अधूरी क्यूँ कही जाती है? वो अपना घर छोड़ आती हैं किसी के लिए पर उम्र भर जिम्मेदारी कितनी निभाती हैं, सबका इतना सोचती खुद को सोचना भूल जाती है बनाके खाना खुद सबसे आखिर में खाती है, हर रोज वही दिनचर्या अवकाश वो कभी ना पाती बदले में बस प्रेम सम्मान और नारी क्या चाहती है? अक्सर लोग कहते उसे कमजोर पर पूछों उससे क्या वो अपने लिए कभी रोती है? फिक्र अपनो की जिक्र अपनों की फिर भी वो कैसे अपनाई नहीं जाती, मुझे ये बात आज तक समझ ना आयी... हर परीक्षा और परिणाम जिंदगी का हर इम्तिहान पास करके भी क्यूँ वो सम्मान नहीं पाती, जिसका वो हकदार होनी थी।। हजारों पाबंदीया उस पर थोपी जाती एक दिन कर देते हम उसके नाम बाकी दिन सीमाओं में नारी फिर क्यों बाँधी जाती हैं ।। ©Priya Gour

#womensday
#8march 11:59

People who shared love close

More like this

Trending Topic