**नव रात्रि का गीत**
जगदम्बा माँ के द्वार सजा है,
नव रात्रि का पर्व पावन,
घुँघरू सा झनके मन के भीतर,
आओ गाएँ संग भावन।
ज्योति जली है दीप सजे हैं,
आशा का हर रंग खिला है,
हर दिल में माँ दुर्गा का मंदिर,
भक्ति का ये गीत बना है।
सभी मिलकर करें आराधन,
नव रात्रि का पर्व पावन।
शेर पे सवार माँ आ रही है,
हर अंधियारा दूर करेगी,
जो भी साधक पुकारे दिल से,
माँ उसकी नैया पार करेगी।
प्रेम से गाओ माँ का वन्दन,
नव रात्रि का पर्व पावन।
रात-दिन ये नाचे धरा,
धूप-चाँदनी संग सजी है,
माँ के चरणों में झुकते हैं,
हर पूजा में शक्ति बसी है।
धरती-आसमान के संग हो गायन,
नव रात्रि का पर्व पावन।
©Shailendra Gond kavi
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