मेरे ग़म को करे ,किनारा कोई....
मुझ बिछड़े को दे अब सहारा कोई,
सारी दुनिया की तकलीफ एक तरफ...
है रहता ,मुझमे, मुझ जैसा, बेचारा कोई......
के कहां तलाश करू सुकून के दो पल.....
यू ही भटकता है मुझमें मारा-मारा कोई,
एक बेरुखी रहती है मेरी महबूबा की आँखों में,
पर चलती रहती है आँखों में ,नर्म, धारा कोई....
के मैं पूरी कायनात क्या मांगू.....
मेरा खुदा बहोत गरीब है ,
वो ना देता है हम जैसों को सहारा कोई...
तारीफ़ के पीछे हर एक शख्स मसरूफ है,
खामियां सुन कर है ,वो बेसहारा कोई ....
दर्द ,गम, खुशिया ये सौगात है रखने वालों की,
बिछड़ा है मुझसे मिलकर, सारे का सारा कोई....
के अब सफेद चादर ओढ़ कर सो जाने का मन है,
अब लगता नहीं जान से भी प्यारा कोई........
कभी दुनिया रंगीन हमारी भी थी ' ऐ दोस्त
उड़ा ले गया जिंदगी का रंग एक खास "हमारा "कोई...
Sku✍️✍️🫠
©Shakina
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