तुम हिन्दी से हो
सरल होकर भी
कितने जटिल
उसी की तरह सूक्ष्म
हृदय को भेदने वाले
आवरण रहित
बिलकुल माटी जैसे
कीचड़ में खेलने को
हमेशा तत्पर
एक अलग ही नाता है
धरा से तुम्हारा
आसान कहाँ है
इतना सरल होना?
ज़मीन से जुड़े रहना
जैसे असान नही है
चंद शब्दों में
हिन्दी के बारे में
कुछ भी कहना
~सुयशी मिश्रा
©Suyashi Mishra
तुम हिन्दी जैसे हो
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