तुम हिन्दी से हो सरल होकर भी कितने जटिल उसी की तर | हिंदी कविता

"तुम हिन्दी से हो सरल होकर भी कितने जटिल उसी की तरह सूक्ष्म हृदय को भेदने वाले आवरण रहित बिलकुल माटी जैसे कीचड़ में खेलने को हमेशा तत्पर एक अलग ही नाता है धरा से तुम्हारा आसान कहाँ है इतना सरल होना? ज़मीन से जुड़े रहना जैसे असान नही है चंद शब्दों में हिन्दी के बारे में कुछ भी कहना ~सुयशी मिश्रा ©Suyashi Mishra"

 तुम हिन्दी से हो
सरल होकर भी 
कितने जटिल
उसी की तरह सूक्ष्म 
हृदय को भेदने वाले
आवरण रहित 
बिलकुल माटी जैसे 
कीचड़ में खेलने को 
हमेशा तत्पर 
एक अलग ही नाता है 
धरा से तुम्हारा 
आसान कहाँ है 
इतना सरल होना? 
ज़मीन से जुड़े रहना 
जैसे असान नही है 
चंद शब्दों में 
हिन्दी के बारे में 
कुछ भी कहना 

~सुयशी मिश्रा

©Suyashi Mishra

तुम हिन्दी से हो सरल होकर भी कितने जटिल उसी की तरह सूक्ष्म हृदय को भेदने वाले आवरण रहित बिलकुल माटी जैसे कीचड़ में खेलने को हमेशा तत्पर एक अलग ही नाता है धरा से तुम्हारा आसान कहाँ है इतना सरल होना? ज़मीन से जुड़े रहना जैसे असान नही है चंद शब्दों में हिन्दी के बारे में कुछ भी कहना ~सुयशी मिश्रा ©Suyashi Mishra

तुम हिन्दी जैसे हो

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