ऐ मुसाफिर तू रूठ गया ,
कैसे मनाऊं तुझे दोस्ताना छूट गया ।
बाते भी अब होती नहीं है,
मिलना तुम चाहते नही हो ।
नाराजगी की वजह ना बताई तुमने,
पूछा तो दोस्ती की गुहाई सुनाई तुमने।
गिला शिकवा थे तो बताते तो सही ,
अगर थी दोस्ती तो जताते तो सही ।
बिना कुछ कहे ही रूठ गए,
पूछा तो बोला दोस्त छूट गए।
दोस्ती के नाम पर मजाक कर दिया,
,दोस्त दोस्त कह कर गुनाहगार कर दिया ।
कहने में क्यों इतना वक्त लगाया तुमने,
बात थी मन में इतनी, तो क्यों नही बताया तुमने ।
इतनी नाराजगी थी ,तो बताते तो सही,
अगर थोड़ा भी हक था हमपर,तो जताते तो सही ।
क्या सिर्फ बोलने को ही दोस्त बनाया तुमने
बस इतनी ही दोस्ती को ,निभाया तुमने ।
लेखक-प्रिया खत्री
©Priya Khatri
दोस्त रूठ गया🥺
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