उलझने अगर देखे तो हम खुद
ही खुद की बड़ाते चले जाते है
उम्मीदों की आस यूही दुसरो
से लगाते चले जाते है
आस टूटने पर फिर इल्जाम
भी दुसरो पर ही लगाते है
ऐसे कर कर हम खुद को
ही ठेस पहुँचाते चले जाते है
इन सब में बस हम अपना
ही दिल दुखाते है
©Sakshi Dhingra
#Eid-e-milad