मध्यम वर्गीय परिवार भाई भाई जैसे हैं, बाकी ऐसे वैसे हैं
किससे कह दूं सच सच में, जो जैसे हैं वैसे हैं
कुछ रोगों के बढ़ते ही, खूं का पानी हो जाए
कुछ लोगों के चलते ही, घर की रौनक खो जाए
उनके दिल की वो जाने, ऐसे हैं तो कैसे हैं
इससे पहले अच्छा था, खुश था घर हर बच्चा था
गुल्लू गोलू खास सभी,कोई नेहरु चच्चा था
किसका काला जादू है, अब सब रेशे-रेशे हैं
यार गरीबी अच्छी थी, सुख-दुख रिश्ते अपने थे
कोई पराया ना अपना, अपने थे बस अपने थे
दिल खाली अब तन्हा है, पास जरा जो पैसे हैं
बडिया ताऊ काकी तो, रखती थी घर को बांधे
खुदगर्जी के बोझों से, टूटे हैं सबके कांधे
एक न उन सा हो पाया, जो भी अब हम मेंसे हैं
©Narendra Pareek
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