हज़ार ख़्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं, मुझे पढ़कर भुला देने वाले कभी अमल करना मेरी बातों को..!
लोगों को परखता फिर लिखता हूॅं दिल के जज्बातों को..!
मुफलिसी में पला वक्त की गरम रेत पर नंगे पांव चला हूॅं..!
क़दम क़दम घायल हुई रुह मेरी कैसे भूलूॅं उन वारदातों को..!
मैंने ये देखा जिंदगी एक मेला है हर वक्त एक झमेला है..!
अपनी राह चल व बराबर रखना जिंदगी के बही खातों को..!
जीवन में यही सीखा है जो लगता वो वैसा कब दिखा है..!
गहरे रिश्ते ही जख्म देते सर पे ना बिठाना रिश्ते नातों को..!
©Rihan khan
#khwahish