अजीब मौसम है, सुबह भी लगता है, शाम भी लगता है,
जो हवा तेरे गली से होकर आती है,
उसका मुझे छूते ही,
मेरे ज़ख्मों को चोट भी लगता है, मरहम भी लगता है,
जाने किस वक्त पर मोहब्बत हो गई हमसे,
जाने किस वक्त पर मोहब्बत हो गई हमसे,
जीना मुश्किल और मौत आसान लगता है,
खैर आशिक तो अपनी आशिकी मे कई मौतें मरता है,
खैर आशिक तो अपनी आशिकी मे कई मौतें मरता है, लेकिन,
आम सी बात है जिसको महसूस करने मे बोहोत जान लगता है,
और,
और तुम मानोगे नहीं ये मगर,
मेरा तजुर्बा कहता है,
तुम मानोगे नहीं ये मगर,
मेरा तजुर्बा कहता है,
खाली अपने मां बाप को छोड़कर,
तुम्हारी तबाही में हर इक इंसान मौन लगता है,
ये जिसके तुम कसमें वादे पे ऐतबार कर बैठे हो,
ये जिसके तुम कसमें वादे पे इतना ऐतबार कर बैठे हो ना,
ज़रा बताओ वो तुम्हारा अपना कौन लगता है?
©Aradhana Mishra
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