अधुरे सपनों के सहारे चल पड़े हम,
जीवन के रास्तों में थामे हाथ हमारे।
बिखरे रहे सपने हमारे आसमान में,
कविता की तरह बहती है ज़िंदगी की धार हमारी।
हर पल एक अधुरा सपना साथ लिए,
खोए रहे हम परवाने उड़ानों में।
मगर नहीं हारे, हिम्मत का साथ दिए,
चलते रहे हम, आगे बढ़ते बदलते जीवन की मंजिलों में।
जैसे एक चिराग रोशन करता है अधूरी रातों को।
वो है सपनों का मुसाफ़िर, अनजान राहों में,
जो नहीं रुकेगा, जो नहीं हारेगा, जीने के साथों में।
अधुरे सपनों के संग, अनिल की कविता बहेगी,
उसकी आवाज़ ज़मीन और आसमान गूंजेगी।
उसकी यात्रा जारी रहेगी अनजान राहों में,
जब तक सपनों के बादल बरसेंगे, उन्हें पूरा करेगी चाहों में।
मानव, तू है सपनों का साथी, आगे बढ़ता है,
जीवन के महाकाव्य में एक अनोखी पंक्ति के रूप में।
©Anil Prajapat
अंधेरे सपनों के सहारे: अनिल प्रजापत
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