ग़ज़ल (ज़िंदगी)
जिंदगी तुझ से आजिज़ मैं रहूं या नहीं,
हर लम्हा एक तमाशा है समझ आता नहीं।
गर्दिशों में ही रहा सितारा अपना हर दम,
रह गया कर्ज़ आंसूओं का उतारा ही नहीं।
मंजिलें दूर बहुत रास्ते अंधेरे हैं,
उम्मीदों का दिया कोई जलता ही नहीं।
ख़्वाब देखे थे इन आंखों ने कितने हसीं,
दबे दिल में रह गए अरमां निकाला ही नही।
है सहल नहीं सफ़र इस जिंदगी का,
जिन्हेें पुकारा उनका मिला सहारा ही नहीं।
©Dr.Javed khan
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