मुड़ कर भी तो देखो तूम बिन अधूरी सी लगती हु
छोड़ कर गए हो तुम जब से खुद मे ही खोई सी लगती हु
दिन को रात कहती हु और रात को दिन मान बैठी हु
तुम होते तो मै यह कहती मै वो कहती अब यही राघ जपती हु
मुड़ कर भी तो देखो तूम बिन अधूरी सी लगती हु
छोड़ कर गए हो तुम जब से खुद मे ही खोई सी लगती हु
©Divya Shekhawat.