मैंने हाल ही में शिवानी जी का उपन्यास "कृष्णकली" पढ़ा, और इसे पढ़ने के बाद यह साफ हो गया कि यह महज़ एक कहानी नहीं, बल्कि समाज के तंग सोच और रूढ़िवादी मानसिकता पर एक सटीक प्रहार है। यह उन सभी स्टीरियोटाइप्स को तोड़ता है जो सुंदरता को बाहरी रूप-रंग तक सीमित करते हैं। कृष्णकली, एक सांवली अनाथ लड़की, जिसे समाज उसके रंग के कारण हमेशा हाशिए पर रखता रहा। लेकिन उसके भीतर की असली सुंदरता उसकी आत्मा की गहराइयों में छिपी थी, जिसे किसी भी बाहरी आडंबर से नहीं तोला जा सकता।
उपन्यास ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि हम किस हद तक समाज के इन घिसे-पिटे नियमों को अपनाते हैं, और किसी के बाहरी आवरण के आधार पर उसका मूल्यांकन कर बैठते हैं। कृष्णकली की कहानी हमें सिखाती है कि असली खूबसूरती वह है जो हमारे भीतर छुपी हुई है। यह आत्मविश्वास, साहस और आत्मसम्मान से परिभाषित होती है। शिवानी जी ने इस किरदार के माध्यम से यह संदेश दिया कि असल पहचान वह होती है जो हम खुद को भीतर से बनाते हैं, न कि वह जो समाज हमारे लिए तैयार करता है।
कृष्णकली की मासूमियत और उसकी सादगी के पीछे छिपी जिजीविषा हमें यह भी बताती है कि हर कठिनाई का सामना आत्मसम्मान और साहस से करना ही असली जीत है। उसके संघर्षों में जो निडरता और जज्बा दिखता है, वह हमें भीतर से प्रेरित करता है। यह उपन्यास हर उस व्यक्ति की कहानी है जो समाज की बनाई सीमाओं से परे जाकर खुद को साबित करना चाहता है।
शिवानी जी ने बहुत ही प्रभावी ढंग से यह दर्शाया है कि सुंदरता की परिभाषा बेहद संकीर्ण होती जा रही है, और उसे नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। "कृष्णकली" पढ़ते समय आप यह महसूस करेंगे कि यह न केवल एक लड़की की संघर्ष गाथा है, बल्कि एक subtle संदेश है कि इंसान की असली पहचान उसकी आंतरिक शक्ति, संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों में होती है।
इसलिए, इस उपन्यास को पढ़ना केवल एक साहित्यिक अनुभव नहीं, बल्कि एक आत्मसाक्षात्कार की यात्रा है। यह हमें अंदर से मजबूत बनने की प्रेरणा देता है, और समाज की बनाई हर उस धारणा को नकारने का साहस भी, जो किसी के रंग-रूप या स्थिति के आधार पर उसकी पहचान तय करती है। "कृष्णकली" की यह कहानी हमें सिखाती है कि हर व्यक्ति अपने आप में अनूठा है, और असली सुंदरता बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि अंदर की सच्चाई में है।
©Veer Tiwari
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