सवाल उनकी बेरुखी , तल्खी संग मौन
और उल्टे जवाब बताते है
कि शायद मेरे अपनों को
कविताएँ मेरी रास नही आती
और एक सच यह भी है कि
जो सैंकड़ो मील दूर है मुझसे
कहते है कि इन्हें सुनकर
निराशा कभी हमारे पास नही आती...
(वाह री दुनिया, तेरे भी गज़ब रंग है)
©कृतान्त अनन्त नीरज...
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