लेकिन किसी ने न पूछा ना सुनना चाहा।
वक्त बर्बाद होता रहा।
🥺 देखते देखते ही सब कुछ खोता रहा।
मैं बर्बाद होता रहा
मैं और अकेला होता रहा।
मैं सच कहता रहा।
लेकीन ये समाज झूठ को बढ़ावा देता रहा।
🥺🥺
बुराई और झूठ का घड़ा इस तरह भरता रहा।
क्या यही न्याय रहा?
मैंने कुछ कहना चाहा पर ...
ये समाज मेरा मुंह बंद करता रहा...
©Nargis prajapat
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