#दिनकर हे सूर्य देव! रवि ,दिनकर,भास्कर भगवान तुम् | हिंदी विचार

"#दिनकर हे सूर्य देव! रवि ,दिनकर,भास्कर भगवान तुम्हारे तेज से हो रही सृष्टि दीप्तिमान ।। उषा काल विकीर्ण होती लालवर्ण रश्मि तुम्हारी कनक सी आभा पा सुरम्य रूप धरती सारी।। मंदिरों मे शंखनाद गूंजे मस्जिदों में अजान गिरिजाघर में प्रार्थना ,गुरुद्वारो में अरदास।। होते ही भोर का भान पंछी आते नीड से बाहर सुरीले स्वर में गाते भरते अंबर में ऊंची उड़ान। निद्रा से जाग ,आलस त्याग, लगता दिनचर्या में इंसान , तुम्हारी उष्मा से प्रकृति का रहता अंग-अंग ऊर्जावान। उच्च हिमालय के पीछे से निकल स्वर्ण किरण आलोकित करती जीव जंतु वनस्पति का कण-कण पहर रूपी दिन के भिन्न में विभाजित धूप तुम्हारी बचपन, यौवन ,जरा जीवनकाल का सार बताती। तुम्हारी महिमा से तमस,कुवास नमी का काम तमाम सजती धरा पहन लाल, बसंती ,धानी, सुनहरे परिधान ।। नकारात्मकता हरकर सकारात्मकता भरकर करते तुम तेज से अपने चेतन अवचेतन में सुख का संचार ।। तुम्हारे उदय-अस्त से ऋतुचक्र दिन रात बनते है नव सृजन को निश्चित उत्पत्ति,अवसान संग चलते है।। निरंतर चलते,तपते ढलते करते तुम सर्व कल्याण हे सूर्यदेव! तुम्हारे तेज से हो रही सारी सृष्टि दीप्तिमान। । ©ABHISHEK SHUKLA"

 #दिनकर

हे सूर्य देव! रवि ,दिनकर,भास्कर भगवान
तुम्हारे तेज से हो रही सृष्टि दीप्तिमान ।।

उषा काल विकीर्ण होती लालवर्ण रश्मि तुम्हारी
कनक सी आभा पा सुरम्य रूप धरती सारी।।

मंदिरों मे शंखनाद गूंजे मस्जिदों में अजान
गिरिजाघर में प्रार्थना ,गुरुद्वारो में अरदास।।

होते ही भोर का भान पंछी आते नीड से बाहर
सुरीले स्वर में गाते भरते अंबर में ऊंची उड़ान।

निद्रा से जाग ,आलस त्याग, लगता दिनचर्या में इंसान ,
तुम्हारी उष्मा से प्रकृति का रहता अंग-अंग ऊर्जावान।

उच्च हिमालय के पीछे से निकल स्वर्ण किरण
आलोकित करती जीव जंतु वनस्पति का कण-कण

पहर रूपी दिन के भिन्न में विभाजित धूप तुम्हारी
बचपन, यौवन ,जरा जीवनकाल का सार बताती।

तुम्हारी महिमा से तमस,कुवास नमी का काम तमाम
सजती धरा पहन लाल, बसंती ,धानी, सुनहरे परिधान ।।

नकारात्मकता हरकर सकारात्मकता भरकर करते
तुम तेज से अपने चेतन अवचेतन में सुख का संचार ।।

तुम्हारे उदय-अस्त से ऋतुचक्र दिन रात बनते है
नव सृजन को निश्चित उत्पत्ति,अवसान संग चलते है।।

निरंतर चलते,तपते ढलते करते तुम सर्व कल्याण
हे सूर्यदेव! तुम्हारे तेज से हो रही सारी सृष्टि दीप्तिमान। ।

©ABHISHEK SHUKLA

#दिनकर हे सूर्य देव! रवि ,दिनकर,भास्कर भगवान तुम्हारे तेज से हो रही सृष्टि दीप्तिमान ।। उषा काल विकीर्ण होती लालवर्ण रश्मि तुम्हारी कनक सी आभा पा सुरम्य रूप धरती सारी।। मंदिरों मे शंखनाद गूंजे मस्जिदों में अजान गिरिजाघर में प्रार्थना ,गुरुद्वारो में अरदास।। होते ही भोर का भान पंछी आते नीड से बाहर सुरीले स्वर में गाते भरते अंबर में ऊंची उड़ान। निद्रा से जाग ,आलस त्याग, लगता दिनचर्या में इंसान , तुम्हारी उष्मा से प्रकृति का रहता अंग-अंग ऊर्जावान। उच्च हिमालय के पीछे से निकल स्वर्ण किरण आलोकित करती जीव जंतु वनस्पति का कण-कण पहर रूपी दिन के भिन्न में विभाजित धूप तुम्हारी बचपन, यौवन ,जरा जीवनकाल का सार बताती। तुम्हारी महिमा से तमस,कुवास नमी का काम तमाम सजती धरा पहन लाल, बसंती ,धानी, सुनहरे परिधान ।। नकारात्मकता हरकर सकारात्मकता भरकर करते तुम तेज से अपने चेतन अवचेतन में सुख का संचार ।। तुम्हारे उदय-अस्त से ऋतुचक्र दिन रात बनते है नव सृजन को निश्चित उत्पत्ति,अवसान संग चलते है।। निरंतर चलते,तपते ढलते करते तुम सर्व कल्याण हे सूर्यदेव! तुम्हारे तेज से हो रही सारी सृष्टि दीप्तिमान। । ©ABHISHEK SHUKLA

#philosophy

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