# हिंदी साहित्य# हिंदी कविता।
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गद्दारों से देश भरा है जहरीला आवेश भरा है।
अपने ही कंधों पर अपनी लाश लिए परिवेश खड़ा है।।
गद्दारों से देश भरा है------2
चारो और विभीषण दिखते जय चंद जिन्हा भीषण दिखते।
कीचड़ में अब कमल नही हाँ कमल में देखा कीचड़ मिलते।।
स्वार्थ नींव पर देश खड़ा है। और असत्य परिवेश खड़ा है।।
गद्दारों से देश भरा है।----2
हर ओर दिखाई देता है आतंक और बस मक्कारी।
जनता हो नेता सब के दिल में बैठी अय्यारी।।
सब ईमान की बातें करते मरा हुआ ईमान पढा है।
गद्दारों से देश भरा है। *-----2
हो समाज के सम्मानित गण राजनीतिज्ञ या कि अभिनेता।
सम्मानित समाज हो या हों समाचार के सभ्य प्रणेता।
देश धर्म हो पानी पानी लाज मुक्त प्रत्येक खड़ा है।।
गद्दारों से देश भरा है, -------2
प्रत्येक क्षेत्र, धर्म और समाज में सब ही अवसर देख रहे हैं।।
सत्ता पाने की चाहत में सब कुछ नेता बेच रहे है।।
हर कोई शासक बनाने के स्वर्णिम सपने देख रहा है।
गद्दारों से देश भरा है, ------2
त्राहि त्राहि हर ओर मची है वायु दूषित और विषयली।
सहृदय चीत्कार करते हैं देख के दूषित मानव शैली।।
तुच्छ स्वार्थ पूर्ति के हेतु मानव हृदय मृत पढ़ा है।
गद्दारों से देश भरा है, जहरीला आबेश भरा है।।
अपने ही कंधों पर अपनी लाश लिए परिवेश खड़ा है ।।
आशुतोष अमन। जय हो 🙏🙏🙏🙏🙏
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©Aashutosh Aman.
#gddaar