मन की व्यथा
व्यथित वेदनाए न जाने कहां लिए जाए,
हृदय पटल के यह संघर्ष हृदय को इतनी क्यों शूल बनकर चूभा करें।
ना व्यथा सहा जाए ना कुछ कहा जाए,
विचित्र व्यथाए है जो
किनारा ढुंढे पर ना मिला करें, चले तो कहां चले।
हृदय की मर्मस्पर्शी भाव का क्या किया जाए
ना व्यक्त किया जाए ना हृदय पटल पर सिया जाए।
©mona khan
# मन की व्यथा