जिसमे संतोष भावना हो प्रभु से दौलत क्या माँगे, हो | हिंदी कविता
"जिसमे संतोष भावना हो प्रभु से दौलत क्या माँगे,
हो जिसमें गुण सज्जनता का दुर्गण के पीछे क्यों भागे,
यूँ तो दुर्जनता के शूल भी बन फूल चमकते हैं,
यदि भटकी भी भीड़ है तो हम भी क्यों रहे आगे।।"
जिसमे संतोष भावना हो प्रभु से दौलत क्या माँगे,
हो जिसमें गुण सज्जनता का दुर्गण के पीछे क्यों भागे,
यूँ तो दुर्जनता के शूल भी बन फूल चमकते हैं,
यदि भटकी भी भीड़ है तो हम भी क्यों रहे आगे।।