White श्री नागेन्द्राचार्य जी महाराज के चरणो में पुष्प अर्पित करते हुए हजारो-लाखो
सदियों से बारम्बार कोटी-कोटी दंडवत चरण स्पर्श हम दोनों शिष्य
धीरन्द्रेचार्य और धर्मेन्द्राचार्य का प्रणाम स्वीकार विकार करे तो चलते है।
अपने समय को बिना आहुति दिये हुए शुरू करते हैं। तो नगोड़ी महाराज
के बारे में कुछ चर्चा करते हैं। उनके दोना शिष्य प्राण प्रिय अतिप्रिय धर्मेन्द्र चार्य और
धीरेन्द्र चार्य को सकुशल थइलेंड से वापसी होने वाले है। जिसमे नगोडी महाराज
उनका भव्य स्वागत करने को उत्सक और एयरपोर्ट पे दोनों शिष्य को
प्राप्त करने हेतु अपने सकुशल और प्रशिक्षित वाहन गदहा पर बैठ
के जाने को तैयार हैं और दोनों शिष्य धीरेन्द्र चार्य और धर्मेन्द्र चार्य को आदर
सहित लाने को तैयार है। फिर से तीनो गुरु-शिष्य बहुत दिनों के बाद मिले
तो एक-दूसरे को देखकर भावुक हो गए फिर नगोड़ी महाराज ने दोनो
शिष्य को गले से लगाया है। और भोजन के खोज में वनकि और चले हैं
तो वन में एक असुर मिला जिसका नाम था दानव अंगेशासुर तो उसके
साथ कुछ वार्तालाप होने के बाद उस अंगेशासुर से युद्ध करने का प्रदभाव
परित हुआ जिसमे अगेशासुर ने धीरन्द्रचार्य को मारकर घायल कर
दिया तो नगोड़ी महाराज की ओर धमेन्द्राचार्य को बहुत दुख का
सामना करना पड़ा तभी नगोड़ी के शिष्य धर्मेंद्रचार्य को एक तरकीब
सुझी और आंगेशासुर को मारने का व्यवस्था बनाया
अपने झोली में से खाने का चम्मच निकल के दे मारा
अंगेशासुर का प्राण न्योछावर हो गया तब नगोडी
महाराज को दिल का दर्द कम हुआ और उसको अपने गले से लगाकर
प्यारकी अनुभुति दिलाई और उधर धिरेन्द्रा चार्य का घायल अवस्था में
दर्द की पीड़ा बढ़ता जा रहा था तो उसको रवि रोशन वैध के पास ले गया
। उसको औषधि देकर धाव पे पट्टी मलहम किया और तीनो आचार्य को
भोजन कराकर सकुशल भेज दिया ये तीनों अपने कटीया में चलें गाएं
भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करने लगे। धन्यवाद
अभी के लिए इतनाही फिर मिलते हैं। अगले एपिसोडमे
©लेखक 01Chauhan1
#GoodNight