White तहजीब सीखने की खातिर घर से निकले हम ,,,हिचक | हिंदी कविता

"White तहजीब सीखने की खातिर घर से निकले हम ,,,हिचकियों में अपनों को सवारते हम ,,, सत्तू की पोटली में मां को निहारते हम ,,, कुछ पीछे छूट जाने की कसक को दिल मैं दफन किए घर से निकले हम,,,, अच्छा लगता है हमको भी मिट्टी में मिलना अपनी नाल को खेतों में दबाना,,, पर निकल चुके हैं हम खुद से दूर बहुत दूर,,, मेडो में बहता पानी खेतों में चरती गईया,,, गेहूं के संग उगता बथुआ,,, वो चूल्हे की मिट्टी वो सिलगती आग में सिकती रोटी,, छूट रहा है सब कुछ मेरी मुट्ठी से रेत सा ©reena sagar"

 White तहजीब सीखने की खातिर घर से निकले हम  ,,,हिचकियों में अपनों को सवारते हम ,,, सत्तू की पोटली में मां को निहारते हम ,,, कुछ पीछे छूट जाने की कसक को दिल मैं दफन किए घर से निकले हम,,,, अच्छा लगता है हमको भी मिट्टी में मिलना अपनी नाल को खेतों में दबाना,,, पर  निकल चुके हैं हम खुद से दूर बहुत दूर,,, मेडो में बहता पानी खेतों में चरती गईया,,, गेहूं के संग उगता बथुआ,,, वो चूल्हे की मिट्टी वो सिलगती आग में सिकती रोटी,, छूट रहा है सब कुछ मेरी मुट्ठी से रेत सा

©reena sagar

White तहजीब सीखने की खातिर घर से निकले हम ,,,हिचकियों में अपनों को सवारते हम ,,, सत्तू की पोटली में मां को निहारते हम ,,, कुछ पीछे छूट जाने की कसक को दिल मैं दफन किए घर से निकले हम,,,, अच्छा लगता है हमको भी मिट्टी में मिलना अपनी नाल को खेतों में दबाना,,, पर निकल चुके हैं हम खुद से दूर बहुत दूर,,, मेडो में बहता पानी खेतों में चरती गईया,,, गेहूं के संग उगता बथुआ,,, वो चूल्हे की मिट्टी वो सिलगती आग में सिकती रोटी,, छूट रहा है सब कुछ मेरी मुट्ठी से रेत सा ©reena sagar

#sad_quotes
छूट रहा है सब कुछ

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