क्या इन राहगिरों की कोई मंजिल न थी,कितना कुछ सहते हैं फिर भी कुछ ना कहते है,तप्ती धूप हों या बारिश की बौछार हो या फिर सर्द हवाओं का पहरा हो,सब कुछ जो सहता है फिर भी चुप रहता हैं,क्या इन राहगीरों की अपनी कोई चाह नहीं,ना कोई उम्मीद और ना ही खुशियों की कोई चाह करते हैं ,क्या इन गुमराह राहगीरों की अपने जीवन से कभी कोई चाह नहीं।।
©Shurbhi Sahu
क्या राहगीरों की कोई जरूरत नही