है रास्ता जहां तक चलते जाना है ठोकरे धोखा फरेब और | हिंदी कविता

"है रास्ता जहां तक चलते जाना है ठोकरे धोखा फरेब और न जाने क्या क्या मिलते जाना है और होगा एक रोज प्रकाश का आगमन लेकिन उससे पहले न जाने कितनी काली रातो का हर रोज आना है। यूं तो खुद को बहुत समेटकर रखा है मैनें लेकिन एक रोज आनी है आंधी जोर से, और हर एक को उम्मीद है कि मुझे तो बिखर ही जाना है। भर कर उड़ान हौसलों की मुझे एक रोज बहुत दूर जाना है और जिस मोड़ पर खडी हूं आज, मुझे अब नही दुबारा वहां लौटकर आना है, है रास्ता जहां तक चलते जाना है। ©Nayak Writes"

 है रास्ता जहां तक चलते जाना है
ठोकरे धोखा फरेब और न जाने क्या क्या मिलते जाना है
और  होगा एक रोज प्रकाश का आगमन लेकिन
उससे पहले न जाने कितनी काली रातो का हर रोज आना है।
यूं तो खुद को बहुत समेटकर रखा है मैनें लेकिन
एक रोज आनी है आंधी जोर से, और 
हर एक को उम्मीद है कि मुझे तो बिखर ही जाना है।
भर कर  उड़ान हौसलों की मुझे एक रोज बहुत दूर जाना है
और जिस मोड़ पर खडी हूं आज,
मुझे अब नही दुबारा वहां लौटकर आना है,
है रास्ता जहां तक चलते जाना है।

©Nayak Writes

है रास्ता जहां तक चलते जाना है ठोकरे धोखा फरेब और न जाने क्या क्या मिलते जाना है और होगा एक रोज प्रकाश का आगमन लेकिन उससे पहले न जाने कितनी काली रातो का हर रोज आना है। यूं तो खुद को बहुत समेटकर रखा है मैनें लेकिन एक रोज आनी है आंधी जोर से, और हर एक को उम्मीद है कि मुझे तो बिखर ही जाना है। भर कर उड़ान हौसलों की मुझे एक रोज बहुत दूर जाना है और जिस मोड़ पर खडी हूं आज, मुझे अब नही दुबारा वहां लौटकर आना है, है रास्ता जहां तक चलते जाना है। ©Nayak Writes

#Ray

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