मेरे शहर में दिखने की बड़ी होड़ है।
तू बड़ा कि मैं बड़ा इसकी लगी दौड़ है।
दौलत के पैमाने में, बड्डपन तौलकर।
मुफ्त में मज़हबी जहर घोलकर।
खुश हैं वो छाती के बटन खोलकर।
मेरे शहर में, दिखने की बड़ी होड़ है।
तू बड़ा कि मैं बड़ा, इसकी लगी दौड़ है।
रिश्ते बरकरार,जिनकी जेबें ग़रम हैं।
बेचकर ईमान वो कितने नरम हैं।
बड़े अदब से आते हैं पेश, बेशरम हैं।
मेरे शहर में, दिखने की बड़ी होड़ है।
तू बड़ा कि मैं बड़ा, लगी इसकी दौड़ है
©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
#शहर#मेरे_शहर_में