मैं सोई नहीं कुछ रातों से पर कोई नहीं
मैं रोई बहुत कुछ रातों से पर कोई नहीं
लिख लिख कर हाथ थके पर कोई नहीं
सपने सारे बदल गए पर कोई नहीं
रातों में मां की कमी है खलती पर कोई नहीं
करवट बदलते सुबह हो जाती पर कोई नहीं
यादों में अक्सर अटक हूं जाती पर कोई नहीं
भूल गई हूं सुकून रात का पर कोई नहीं
ऐसे तो जीना मुश्किल है पर कोई नहीं
©Amita Tiwari
#Parchhai