जे सन बाँधी डोर मोह की, इक दिन छोड़के जाय.. जा पर | हिंदी कविता

"जे सन बाँधी डोर मोह की, इक दिन छोड़के जाय.. जा पर तेणे करो भरोसो, ओ ही दग़ा दे जाय.. लाख मनाये मानत नइहाँ कौन तोह समझाय.. जगत में आपण कौउ ना भाय.. नारी सुत परिवार सखा सब, सुख में साथ निभाय विपदा की जब मार पड़त है, कोऊ संग नहीं आय.. जा खे रे ते आपण माने, ओ ही आग लगाय.. जगत में आपण कोऊ ना भाय.. धन दौलत को गरब ना करिये, सब माटी हो जाय.. कंचन बदन जो आज खिलो है,काल वही कुम्हलाय.. जा तण तेणे आपन जानो, वा तन भी जर जाय.. जगत में आपण कोऊ ना भाय.. ©अज्ञात"

 जे सन बाँधी डोर मोह की, इक दिन छोड़के  जाय.. 
जा पर तेणे करो भरोसो, ओ ही दग़ा दे जाय..
लाख मनाये मानत नइहाँ कौन तोह समझाय.. 
जगत में आपण कौउ ना भाय..

नारी सुत परिवार सखा सब, सुख में साथ निभाय 
विपदा की जब मार पड़त है, कोऊ संग नहीं आय..
जा खे रे ते आपण माने, ओ ही आग लगाय..  
जगत में आपण कोऊ ना भाय.. 

धन दौलत को गरब ना करिये, सब माटी हो जाय.. 
कंचन बदन जो आज खिलो है,काल वही कुम्हलाय..
जा तण तेणे आपन जानो, वा तन भी जर जाय.. 
जगत में आपण कोऊ ना भाय..

©अज्ञात

जे सन बाँधी डोर मोह की, इक दिन छोड़के जाय.. जा पर तेणे करो भरोसो, ओ ही दग़ा दे जाय.. लाख मनाये मानत नइहाँ कौन तोह समझाय.. जगत में आपण कौउ ना भाय.. नारी सुत परिवार सखा सब, सुख में साथ निभाय विपदा की जब मार पड़त है, कोऊ संग नहीं आय.. जा खे रे ते आपण माने, ओ ही आग लगाय.. जगत में आपण कोऊ ना भाय.. धन दौलत को गरब ना करिये, सब माटी हो जाय.. कंचन बदन जो आज खिलो है,काल वही कुम्हलाय.. जा तण तेणे आपन जानो, वा तन भी जर जाय.. जगत में आपण कोऊ ना भाय.. ©अज्ञात

#भजन

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