लफ्जों की आग में जल उठता है ह्रदय
दर्द इतना की टूट जाती हैं सारी सरहदें
इसकी आग में झुलसती हैं सारी भावनाएं
जिंदगी को सुलगा करती है सबको पराया
खुशियों के पल जो कभी थे उन्हें भी देती है कुमलाह
ये दूसरों को जलाती है खुद को भी बनाती है राख
©Shikha Srivastava
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