*छुअन*
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आज पानी को
बहते देखा कुछ अलग
नजरिये से,
लगा तुमसा ही
कुछ-कुछ
ऊपर से थोड़ा
उफनता हुआ
पर शायद भीतर से
शान्त था ।
उसकी फुहारों की
छुअन कुछ तुमसी लगी,
कोमल और शीतलता से भरी ।
उसे में अपने आलिंगन में ले
समेट लेना चाहता था
खुद में,
लेकिन कर न पाया
जैसे तुम्हें नहीं
कर पाता हूं ।
हां पर उसका स्पर्श
मुझे तुम्हारे स्पर्श सा लगा,
वो मुझे छू रहा था
तुम्हारी तरह
और मैं बस
खोया ही रहा ,
पता ही नही चला
कब मैं पूरा भीग चुका था,
और वो मुझमें
समा गया.....
©shubham jain *parag*
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