मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं फ़ालतू अक़्ल मुझ में | हिंदी शायरी

"मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं अकबर इलाहाबादी Alisiraj002"

 मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं 
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं 

अकबर इलाहाबादी









Alisiraj002

मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं अकबर इलाहाबादी Alisiraj002

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