White सर्वधर्मान्परित्यज्य
यहाँ पहले समझना होगा कि हिन्दू मुस्किल आदि को धर्म नहीं जीवन शैली है । धर्म वह कर्तव्य कर्म है जिससे सामाजिक उन्नति और अन्त में मोक्ष प्राप्ति का साधन बने — यतोऽभ्युदयः निःश्रेयसस्सिद्धिः (वैशेषिक दर्शन) । इसका श्री शङ्कराचार्य जी ने गीताभाष्य के उद्बोधन में विस्तार से वर्णन किया है । अतः लक्ष्य के प्राप्त होने पर साधन का त्याग आवश्यक है । लक्ष्य प्राप्त होने पर यही कृतकृत्यता है । इसी स्थान पर सभी धर्म अर्थात् कर्तव्योंकी पूर्णाहुति हो जाती है । यही है सर्वधर्मान्परित्यज्य । ओ३म् !
©स्वामी शिवाश्रम
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