विरों की ये धरती है
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हम विरों की धरती है हमने खुन बहाइ है
प्राणो का देकर बलिदान इसकी शान बढ़ायी है।
अपने धरती मां के खातिर हमने करी लड़ाई है
हम विरों की धरती है हमने खुन बहाइ है।
याद रहे इस कुर्बानी का किमत अभी चुकाना है
देश के पुरे गद्दारों को जड़ से उन्हे मिटाना है।
देश के अपने गद्दारों ने दुश्मन को किया ईसारा था
राज के लोभ में आकर के ग्वालियर ने रानी को मारा था।
आज भी गद्दार छुपे हैं देश को वाट लगाने को
जागो विर जवानों अब इन दुश्मन को धूल चटाना है।
याद रहे इस कुर्बानी का किमत अभी चुकाना है
देश के पूरे गद्दारों को जड़ से उन्हे मिटाना है।
वन्देमातरम-वन्देमातरम-वन्देमातरम।
©Surendra Kumar Kahar
कविता