आ अब गांव चलते हैं
बगिया में ठहरतें हैं
कलियों को छेड़तें हैं
शिकंजों से खाकर शिकस्त
शरारते बस्तियों में चलते हैं ।
आ अब गांव चलते हैं
जंग ए जश्न जिंदगी होते हैं
सिर्फ चतुराई नहीं मौज करते हैं
खुदगर्ज़ व खुदगर्ज़ी से रहकर खफा
खुदा ए दरमियां में चलते हैं ।
आ अब गांव चलते हैं ।।
#poemonmyvillage :
- ईशांत मोदी
#myvillage ।