पंछी खुले आसमां का परिंदा हूं, अपनी हद भूल बैठा था | हिंदी Motivation

"पंछी खुले आसमां का परिंदा हूं, अपनी हद भूल बैठा था। अपनों को पहचानने का, सारी फर्कें भूल बैठा था। चाहत, उल्फत, शोहरत, पाने की ख्वाहिशों में "मैं"। पता नहीं क्यों अपनी, औकातों को भूल बैठा था।। ©Kumar Vivek"

 पंछी खुले आसमां का परिंदा हूं,
अपनी हद भूल बैठा था।
अपनों को पहचानने का,
सारी फर्कें भूल बैठा था।
चाहत, उल्फत, शोहरत,
पाने की ख्वाहिशों में "मैं"।
पता नहीं क्यों अपनी,
औकातों को भूल बैठा था।।

©Kumar Vivek

पंछी खुले आसमां का परिंदा हूं, अपनी हद भूल बैठा था। अपनों को पहचानने का, सारी फर्कें भूल बैठा था। चाहत, उल्फत, शोहरत, पाने की ख्वाहिशों में "मैं"। पता नहीं क्यों अपनी, औकातों को भूल बैठा था।। ©Kumar Vivek

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