हमारी तरह तुम कभी तो हमसे प्यार कर लेते,
अपनी मोहब्ब़त का तुम कभी तो इक़रार कर लेते।
तुम क्या जानों कितना तड़पे हैं तुम्हारी ख़ातिर,
कभी तुमभी ख़ुद को हमारे लिए बेक़रार कर लेते।
एक तरफ़ा मोहब्ब़त से दूरियाँ बेहतर लगी हमको,
तुमने भी तन्हा छोड़ा कभी तो हमारा इंतज़ार कर लेते।
एक बार मुड़कर देखना भी मुनासिब ना समझा,
काश तुम भी पलटकर एक आख़िरी दीदार कर लेते।
माना कि रंज-ओ-गम ही मिला तुम्हारी मोहब्ब़त में,
पर तुम्हे पाने की ख़ातिर तुमसे इश्क़ हर बार कर लेते।
भले ही फिर मिलती रुसवाईयाँ तुम्हारे इश्क़ में हमें,
उसको अपना मुक़द्दर समझ फिर अश्क़बार कर लेते।
हम सीने से लगा लेते तुम्हे उन्ही बिख़रते पलों में,
थोड़ा ही सही, काश! तुम भी हमारा ऐतबार कर लेते।
"अविरल रुचि'
©Ruchi Singh
कभी तो हमसे प्यार कर लेते...
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