हर बार कुछ यूँ ही आँसुएँ फ़िज़ूल करता हूँ, इंसा ह | हिंदी शायरी

"हर बार कुछ यूँ ही आँसुएँ फ़िज़ूल करता हूँ, इंसा हूँ, इंसानों को ना पहचानने की जो भूल करता हूँ... ©Mani"

 हर बार कुछ यूँ ही
आँसुएँ फ़िज़ूल करता हूँ, 
इंसा हूँ, इंसानों को ना पहचानने की
जो भूल करता हूँ...

©Mani

हर बार कुछ यूँ ही आँसुएँ फ़िज़ूल करता हूँ, इंसा हूँ, इंसानों को ना पहचानने की जो भूल करता हूँ... ©Mani

#Life

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