फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है तारीखों के जीने से क | हिंदी कविता

"फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है तारीखों के जीने से कुछ चेहरे घटे , चंद यादे जुड़ी वक़्त में, उम्र का पंछी नित दूर और दूर उड़ रहा है | गुनगुनी धूप और ठिठुरी राते जाड़ो की, गुजरे लम्हों पर झीना झीना पर्दा गिर रहा है। फिर एक दिसम्बर गुजर रहा है.."

 फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है 
तारीखों के जीने से 
कुछ चेहरे घटे , चंद यादे जुड़ी 
वक़्त में,  
उम्र का पंछी नित दूर और दूर 
उड़ रहा है |
गुनगुनी धूप और ठिठुरी राते 
जाड़ो की,
गुजरे लम्हों पर झीना झीना  
पर्दा गिर रहा है।
फिर एक दिसम्बर गुजर रहा है..

फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है तारीखों के जीने से कुछ चेहरे घटे , चंद यादे जुड़ी वक़्त में, उम्र का पंछी नित दूर और दूर उड़ रहा है | गुनगुनी धूप और ठिठुरी राते जाड़ो की, गुजरे लम्हों पर झीना झीना पर्दा गिर रहा है। फिर एक दिसम्बर गुजर रहा है..

#अलविदा_दिसंबर
#saurabh Chaturvedi

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