कितना दर्द कितनी पीड़ा
जब सहती हैं ये बेटियाँ
सब जानती हैं फिर भी
चुप रहती हैं ये बेटियां
फ़िर भी
उसे समझने वाला अकसर चुप हो जाता हैं
खुद के अरमानों का भी
गला घोंट देती है बेटियाँ
सारे जिम्मेदारियों को
सर पर लेती हैं बेटियाँ
फिर भी
उसको सहारा देने वाला अकसर सो जाता हैं
आयेगा खुशियों का दिन
इसी आस में है बेटियाँ
जहाँ रहती हैं माँ दुर्गा
उसी निवास में है बेटियाँ
फिर भी
फूल बिछाने वाला अकसर काँटे बो जाता हैं
पुष्प के जैसी कोमल
नाज़ुक होती है बेटियाँ
प्रेम से वंचित रहे फिर
बहुत रोती हैं बेटियाँ
फ़िर भी
आँसू पोछने वाला अकसर खुद ही रो जाता हैं
~किशोर मनी
#kavita #Betiyan