‘मैं सब जानती हूं’
पंख नहीं, फिर भी उड़ना जानती हूं।
हंसी ना आए, फिर भी हंसना जानती हूं।
मिटा ना पाऊं किसी दर्द को जड़ से,
फिर भी मरहम लगाना जानती हूं।
ना मिले एनमौके पर वह मंजिल मुझे,
फिर भी, मैं उस मंजिल को पाना जानती हूं।
जी हां मैं सब जानती हूं।
हार जानती हूं, जीत जानती हूं।
हार वाला दुख जानती हूं, जीत वाली खुशी जानती हूं।
दोस्तों का विश्वास जानती हूं, अनजान की इंसानियत जानती हूं।
जी हां मैं सब जानती हूं।
रुलाने वालों को भी जानती हूं, हंसाने वालों को भी जानती हूं।
आंसू पोंछने वालों को भी जानती हूं, और किसी पराए को अपना बनाने वालों को भी बखूबी जानती हूं।
जी हां मैं सब जानती हूं।
भले की भलाई जानती हूं, बुरे की बुराई जानती हूं।
बड़ों का बड़प्पन जानती हूं, जिसने मंजिल प्राप्त कर ली उनका इतराना भी बखूबी जानती हूं।
जी हां मैं सब जानती हूं।
मेरी लेखनी कभी कुछ गलत लिख दे तो मैं उसे गलती को सही लिख देना भी जानती हूं। अगर भुला दे कोई अपना मुझे तो मैं उनको भी भूलना जानती हूं।
जी हां मैं सब जानती हूं
और अंतिम,,,,,,,
पापा का प्रेम जानती हूं, मां के मन की बात जानती हूं।
पति का प्यार जानती हूं, सास ससुर का दुलार जानती हु।
बहन की बातें जानती हूं जीजू का मान सम्मान जानती हु।
जी हां यह तो मैं बचपन से जानती हूं।
मैं सब जानती हूं। मैं सब जानती हु।।
इचु शेखावत
©Icharaj kanwar
#मैं सब जानती हु।