गुरु वही है जो ।। कहाँ अंत है तीन लोक का, कहाँ चर | हिंदी शायरी

"गुरु वही है जो ।। कहाँ अंत है तीन लोक का, कहाँ चराचर हुआ शुरू, कहां गूंजता नाद गगन में, किस से करते बात तरु, गिरि से कैसे छूटी धारा, क्यों है जल से विरक्त मरु, सकल विश्व का ज्ञान समेटे, भृकुटि ध्यान लगा कर के, वचन से अपने एक ही पल में, सब संशय करे दूर गुरू ।। अज्ञान तमस को चीर मिटाये, ज्योति-पुंज-प्रकाश गुरू..।। बिन भेदी के दर-दर डोले, ज्यों स्वामी बिन ढोर "किशोर" हाथ पकड़ कर राह दिखाते, राह भटकों की आस गुरू। ©कमल "किशोर""

 गुरु वही है जो  ।। कहाँ अंत है तीन लोक का, कहाँ चराचर हुआ शुरू,
कहां गूंजता नाद गगन में, किस से करते बात तरु,
गिरि से कैसे छूटी धारा, क्यों है जल से विरक्त मरु,
सकल विश्व का ज्ञान समेटे, भृकुटि ध्यान लगा कर के,
वचन से अपने एक ही पल में, सब संशय करे दूर गुरू ।।

अज्ञान तमस को चीर मिटाये,
ज्योति-पुंज-प्रकाश गुरू..।।
बिन भेदी के दर-दर डोले,
ज्यों स्वामी बिन ढोर "किशोर"
हाथ पकड़ कर राह दिखाते,
राह भटकों की आस गुरू।

©कमल "किशोर"

गुरु वही है जो ।। कहाँ अंत है तीन लोक का, कहाँ चराचर हुआ शुरू, कहां गूंजता नाद गगन में, किस से करते बात तरु, गिरि से कैसे छूटी धारा, क्यों है जल से विरक्त मरु, सकल विश्व का ज्ञान समेटे, भृकुटि ध्यान लगा कर के, वचन से अपने एक ही पल में, सब संशय करे दूर गुरू ।। अज्ञान तमस को चीर मिटाये, ज्योति-पुंज-प्रकाश गुरू..।। बिन भेदी के दर-दर डोले, ज्यों स्वामी बिन ढोर "किशोर" हाथ पकड़ कर राह दिखाते, राह भटकों की आस गुरू। ©कमल "किशोर"

गुरू

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