अब खयालो का सम्मा ना फिर से जलाओं रात को रात रहनें | हिंदी शायरी

"अब खयालो का सम्मा ना फिर से जलाओं रात को रात रहनें दो कुछ पल के लिए, बहुत रौशन हुआ था तुम्हारे उम्मीदों से मन कट रही हैं पतंग अब ना दिशा दिखाओं, समेट लूंगी मैं ये अश्कों की बहती धारा मैंनें देखा हैं माँ को रिश्तों की बुनती माला, मेरी इस कहानी का कोई खुलासा नही ना रांझा ना हीर कोई दिलासा नही, वफा के रास्ते का होता कोई वजूद नही एक मन हैं रब के सिवा कोई सबूत नही। माधवी मधु ©madhavi madhu"

 अब खयालो का सम्मा ना फिर से जलाओं
रात को रात रहनें दो कुछ पल के लिए,

बहुत रौशन हुआ था तुम्हारे उम्मीदों से मन
कट रही हैं पतंग अब  ना दिशा दिखाओं,

समेट लूंगी मैं ये अश्कों की बहती धारा
मैंनें देखा हैं माँ को रिश्तों की बुनती माला,

मेरी इस कहानी का कोई खुलासा नही
ना रांझा ना हीर कोई दिलासा नही,

वफा के रास्ते का होता कोई वजूद नही
एक  मन हैं रब के सिवा कोई सबूत नही।
                                         माधवी मधु

©madhavi madhu

अब खयालो का सम्मा ना फिर से जलाओं रात को रात रहनें दो कुछ पल के लिए, बहुत रौशन हुआ था तुम्हारे उम्मीदों से मन कट रही हैं पतंग अब ना दिशा दिखाओं, समेट लूंगी मैं ये अश्कों की बहती धारा मैंनें देखा हैं माँ को रिश्तों की बुनती माला, मेरी इस कहानी का कोई खुलासा नही ना रांझा ना हीर कोई दिलासा नही, वफा के रास्ते का होता कोई वजूद नही एक मन हैं रब के सिवा कोई सबूत नही। माधवी मधु ©madhavi madhu

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