"White ख़ुद के ज़ख्मों का खुद हीं हिसाब रखते हैं
हम तो गर्मी में ठंडा मिजाज रखते हैं
वो जो कहते हैं उन्हें मेरी अब जरूरत ना रही
उनके कदमों में दिलो जां निसार रखते हैं
धूप आएगी सहर को यकीन है लेकिन
शाम नाम पे अपने किस्से तमाम रखते हैं
रोज़ दम तोड़ती,सड़क पे हूनर फकीरों की
और महलों में लोग गुफ्तगू ए शाम रखते हैं
राजीव..
©samandar Speaks"