White ख़ुद के ज़ख्मों का खुद हीं हिसाब रखते हैं हम | हिंदी कविता

"White ख़ुद के ज़ख्मों का खुद हीं हिसाब रखते हैं हम तो गर्मी में ठंडा मिजाज रखते हैं वो जो कहते हैं उन्हें मेरी अब जरूरत ना रही उनके कदमों में दिलो जां निसार रखते हैं धूप आएगी सहर को यकीन है लेकिन शाम नाम पे अपने किस्से तमाम रखते हैं रोज़ दम तोड़ती,सड़क पे हूनर फकीरों की और महलों में लोग गुफ्तगू ए शाम रखते हैं राजीव.. ©samandar Speaks"

 White ख़ुद के ज़ख्मों का खुद हीं हिसाब रखते हैं
हम तो गर्मी में  ठंडा मिजाज रखते हैं 

वो जो कहते हैं उन्हें मेरी अब जरूरत ना रही
उनके कदमों में दिलो जां निसार रखते हैं

धूप आएगी सहर को यकीन है लेकिन
शाम नाम पे अपने किस्से तमाम रखते हैं 

रोज़  दम तोड़ती,सड़क पे हूनर फकीरों की
और महलों में लोग गुफ्तगू ए शाम रखते हैं 
राजीव..

©samandar Speaks

White ख़ुद के ज़ख्मों का खुद हीं हिसाब रखते हैं हम तो गर्मी में ठंडा मिजाज रखते हैं वो जो कहते हैं उन्हें मेरी अब जरूरत ना रही उनके कदमों में दिलो जां निसार रखते हैं धूप आएगी सहर को यकीन है लेकिन शाम नाम पे अपने किस्से तमाम रखते हैं रोज़ दम तोड़ती,सड़क पे हूनर फकीरों की और महलों में लोग गुफ्तगू ए शाम रखते हैं राजीव.. ©samandar Speaks

#GoodNight @Mukesh Poonia अंजान @Satyaprem Upadhyay @Gautam Kumar @Sandeep L Guru

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