स्त्री धन क्या है जिसने समझ लिया
समजो उनको अपना अस्तित्व मिल गया
चाहो तो स्त्री को सती मानो
या मानो सीता हर रूप मै हर लिहाज मै
खरी उतर रही वो आज
शासन करती स्त्री है
ISRO मै भी स्त्री है,
अंतराल मै स्त्री है कोक पालती वो भी स्त्री है,
मत भुलो ये बेचिदे पटवार को
रामायण कि गरिमा से अस्तित्व ढुंढती आज वो
याद करो वो वक्त जरा भरी सभा चिरहरणं हुआ
तप तपाती आग मै
कुल भी विंधवन्स हुआ
जब भी वो एकसाथ हुई रचना स्त्रीष्टी कि
बात हुई
एकसमान एकरूप से भारत विंध्य कि शान हुई
©Rashmi umak
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