गरीब घर तक अभी पहुचे भी ना होंगे,
बेरोजगारी के कष्ट अभी मिटे भी ना होंगे
पटारियों पर बिखरी रोटियां अभी सूखी भी ना होंगी,
समशान मे अभी लाशें जली भी ना होंगी,
छलावो का फिर एक गज़ट आ गया है,
सुना है आंकड़ों का संसद मे फिर बजट आ गया है
© Prem kumar gautam
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